मुंबई भीषण बारिश: जलवायु संकट की घंटी
मुंबई—वह शहर जो कभी नहीं रुकता, इस बार बारिश की लगातार मार से घुटनों पर आ गया। आसमान से बरसते पानी ने सड़कों को दरिया बना दिया, रेलगाड़ियों को ठप कर दिया और हवाई अड्डों को मानो तालाब में बदल दिया। सवाल यह है कि आखिर यह बारिश महज़ एक प्राकृतिक घटना है या जलवायु परिवर्तन का कड़वा सच?

आँकड़े जो चौंका देते हैं
पिछले कुछ दिनों में मुंबई पर बारिश का कहर ऐसा टूटा कि महज़ 24 घंटे में 300 मिमी से अधिक वर्षा दर्ज हुई। कई इलाकों में तो पानी इतना बढ़ गया कि लोगों को घरों से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाना पड़ा।
शहर के उपनगरीय इलाकों में अगस्त के महीने में ही 900 मिमी से ज्यादा बारिश हो चुकी है, जो दशक का दूसरा सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। कुछ जगहों पर 36 घंटे में 400 मिमी से अधिक पानी गिरा—यह किसी भी आधुनिक शहर के लिए एक गंभीर चुनौती है।
बारिश की तीव्रता क्यों बढ़ रही है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि मुंबई में बारिश के पैटर्न में यह बदलाव जलवायु परिवर्तन और समुद्री तापमान में वृद्धि की वजह से हो रहा है। अरब सागर का बढ़ता तापमान बादलों को और अधिक ऊर्जा दे रहा है, जिससे वे अचानक फट पड़ते हैं।
इसके अलावा, शहर का बेतरतीब शहरीकरण और कंक्रीट का फैलाव “हीट आइलैंड” प्रभाव को जन्म दे रहा है। इसका सीधा असर बादलों के जमाव और बारिश की तीव्रता पर पड़ता है।
जब शहर थम गया
बारिश की वजह से मुंबई की स्थानीय ट्रेनें घंटों रुकी रहीं, जो इस शहर की धड़कन मानी जाती हैं। हवाई सेवाओं में विलंब हुआ, हजारों यात्री फंसे रहे। सड़कों पर ट्रैफिक रेंगता रहा और कुछ इलाकों में पानी इतना भर गया कि नावों का सहारा लेना पड़ा।
रोज़गार और जीवन का पहिया थम गया। स्कूल-कॉलेज बंद हुए, दफ्तर खाली रहे। मुंबई जो हमेशा तेज़ रफ्तार से दौड़ती है, वह कुछ घंटों के लिए रुक-सी गई।
चेतावनी की घंटी
बृहन्मुंबई महानगर पालिका की रिपोर्टों में साफ कहा गया है कि अब हर साल औसतन 15–20 दिन ऐसे हो रहे हैं जब 100 मिमी से अधिक वर्षा होती है। पहले जहां एक बारिश के दिन में औसतन 120–130 मिमी पानी गिरता था, वहीं अब यह आँकड़ा 180–200 मिमी तक पहुँच चुका है।
इसका मतलब है कि बारिश अब सिर्फ “तेज़” नहीं, बल्कि “अत्यधिक और खतरनाक” हो चुकी है। आने वाले वर्षों में यह स्थिति और बिगड़ सकती है।
जनता की कठिनाई और सीख
मुंबईकरों ने हमेशा की तरह हिम्मत दिखाई—लोगों ने एक-दूसरे की मदद की, घरों के दरवाज़े खोले और फंसे यात्रियों को खाना-पानी दिया। लेकिन यह सवाल बार-बार गूंजता रहा: क्या सिर्फ जनता की हिम्मत काफी है?
अगर जलनिकासी तंत्र समय पर साफ न हो, यदि अवैध निर्माण न रोके जाएँ, अगर शहरी योजना जलवायु विज्ञान को ध्यान में रखकर न बने—तो ऐसे हालात बार-बार दोहराए जाएंगे।
निष्कर्ष: आने वाले कल की तैयारी
मुंबई की यह भीषण बारिश हमें एक आईना दिखाती है। यह सिर्फ मौसम नहीं, बल्कि चेतावनी है—कि अगर हमने अभी भी पर्यावरण और जलवायु को गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले वर्षों में “शहर जो कभी नहीं सोता” शायद बार-बार डूबता रहेगा।
मुंबई की यह कहानी आज पूरे भारत और दुनिया के लिए सबक है। मौसम बदल रहा है, और हमें भी बदलना होगा—नीतियों में, आदतों में और सोच में। तभी हम इस प्राकृतिक शक्ति से तालमेल बिठाकर सुरक्षित रह पाएंगे।